How to cultivate Ginger: अदरक एक महत्वपूर्ण मसाला और औषधि है। यह भारत, चीन, जापान, और अन्य एशियाई देशों में व्यापक रूप से उगाया जाता है। अदरक की खेती (Adrak ki kheti) भारत में एक लाभदायक व्यवसाय भी है।
अदरक की खेती के लिए भूमि की तैयारी
अदरक की खेती के लिए अच्छी तरह से उर्वर, समतल, और जल निकासी वाली मिट्टी उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH मान 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए। खेत की दो या तीन बार गहरी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा कर लेना चाहिए।
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अदरक की खेती कब की जाती है
अदरक की खेती भारत में दो मौसमों में की जाती है:
- सिंचाई वाली स्थिति में: फरवरी-मार्च
- असिंचित स्थिति में: मई-जून
सिंचाई वाली स्थिति में अदरक की खेती अधिक उपज देती है। अदरक की खेती के लिए उपयुक्त तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस होता है।
अदरक की खेती के लिए बुआई का समय मिट्टी की नमी और जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करता है। सामान्य तौर पर, अदरक की बुआई के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
अदरक की खेती के लिए भूमि की तैयारी दो या तीन बार गहरी जुताई करके की जाती है। जुताई के बाद खेत में अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद मिला दी जाती है।
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अदरक की खेती कहां होती है
अदरक की खेती भारत, चीन, जापान, इंडोनेशिया, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, और अन्य एशियाई देशों में व्यापक रूप से की जाती है। भारत में अदरक की खेती मुख्य रूप से केरल, उड़ीसा, आसाम, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, और उत्तराखंड राज्यों में की जाती है।
भारत में अदरक उत्पादन के मामले में केरल प्रथम स्थान पर है। इसके बाद उड़ीसा, आसाम, उत्तर प्रदेश, और पश्चिम बंगाल का स्थान आता है।
अदरक की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु गर्म और आर्द्र होती है। अदरक की खेती के लिए उपयुक्त तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस होता है।
अदरक की खेती के लिए अच्छी तरह से उर्वर, समतल, और जल निकासी वाली मिट्टी उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH मान 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए।
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अदरक की खेती सरकारी सहायता अनुदान
भारत सरकार अदरक की खेती को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की सरकारी सहायता प्रदान करती है। इनमें से कुछ प्रमुख सहायता निम्नलिखित हैं:
- मसाला क्षेत्र विस्तार योजना: इस योजना के तहत अदरक, हल्दी, और लहसुन जैसी मसाला फसलों की खेती के लिए किसानों को अनुदान दिया जाता है।
- उत्पादन बढ़ावा योजना: इस योजना के तहत किसानों को उन्नत बीज, खाद, और उर्वरक की खरीद के लिए सब्सिडी दी जाती है।
- फसल बीमा योजना: इस योजना के तहत अदरक की फसल को प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान के लिए बीमा प्रदान किया जाता है।
- प्रशिक्षण और अनुसंधान: सरकार किसानों को अदरक की खेती के लिए प्रशिक्षण और अनुसंधान सुविधाएं प्रदान करती है।
इन सरकारी सहायताओं के कारण अदरक की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक व्यवसाय बन गई है।
अदरक की खेती के लिए बीज
अद रक के बीज के रूप में प्रकंद (राइजोम) का उपयोग किया जाता है। प्रकंद स्वस्थ, रोगमुक्त, और अच्छी तरह से विकसित होना चाहिए। प्रकंद को 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर और 10 सेंटीमीटर की गहराई पर लगाया जाता है।
अदरक की खेती सिंचाई
अद रक की फसल को नियमित रूप से सिंचाई की आवश्यकता होती है। बुआई के बाद पहली सिंचाई तुरंत करनी चाहिए। इसके बाद, आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए।
अदरक की खेती खाद और उर्वरक
अद रक की फसल को अच्छी उपज के लिए खाद और उर्वरक की आवश्यकता होती है। बुआई से पहले खेत में अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद मिला देनी चाहिए। इसके अलावा, बुआई के बाद और पौधों की बढ़वार के समय 10:26:26 या 12:24:12 के अनुपात में NPK उर्वरक का छिड़काव करना चाहिए।
अदरक की खेती खरपतवार नियंत्रण
अद रक की फसल में खरपतवार नियंत्रण करना आवश्यक है। खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए निराई-गुड़ाई और खरपतवारनाशक दवाओं का उपयोग किया जा सकता है।
अदरक की खेती रोग और कीट नियंत्रण
अद रक की फसल में कई रोग और कीट लग सकते हैं। इन रोगों और कीटों से बचाव के लिए समय-समय पर सावधानी बरतनी चाहिए।
अदरक की खेती कब कटाई करे
अद रक की फसल 8 से 10 महीने में तैयार हो जाती है। कटाई के लिए पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। कटाई के लिए मिट्टी से प्रकंदों को खोदकर निकाल लिया जाता है।
अदरक की खेती उपज
अद रक की खेती से प्रति हेक्टेयर 20 से 25 टन तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
अदरक की खेती से होने वाले लाभ
अद रक की खेती एक लाभदायक व्यवसाय है। इसकी खेती से किसानों को अच्छी आय प्राप्त होती है। अदरक की खेती में अन्य फसलों की तुलना में कम लागत लगती है। इसके अलावा, अदरक की खेती में सिंचाई की आवश्यकता भी कम होती है।
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अदरक की खेती के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव
- अदरक की खेती के लिए उन्नत बीज का उपयोग करें।
- खेत की अच्छी तरह से तैयारी करें।
- पौधों को नियमित रूप से सिंचाई करें।
- समय-समय पर खरपतवार नियंत्रण करें।
- रोग और कीटों से बचाव के लिए सावधानी बरतें।
- उपज के समय पौधों को क्षति से बचाएं।