ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) भारत में एक ऐसी पेंशन योजना थी, जिसे सरकारी कर्मचारियों के लिए 1 जनवरी 2004 से पहले लागू किया गया था। इस स्कीम के तहत, सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारियों को एक निश्चित मासिक पेंशन मिलती थी, जो उनकी अंतिम वेतन का एक निश्चित प्रतिशत होता था। यह पेंशन सरकार द्वारा पूरी तरह से वित्तपोषित होती थी, और इसे एक “परिभाषित लाभ” योजना के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इसमें पेंशन की राशि पहले से तय होती थी।
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ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) का इतिहास
शुरुआत:
- शुरुआत: ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) की शुरुआत ब्रिटिश शासनकाल में हुई थी और स्वतंत्र भारत में इसे जारी रखा गया। यह स्कीम भारतीय स्वतंत्रता के बाद भी लागू रही और सभी सरकारी कर्मचारियों को इसका लाभ मिलता रहा।
- लागू: स्वतंत्रता के बाद, इसे केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अपने कर्मचारियों के लिए लागू किया गया था। हालांकि, इसके लागू होने की कोई विशिष्ट तारीख नहीं है, लेकिन यह 2004 से पहले तक सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए मान्य थी।
बंद:
- किसने बंद की: ओल्ड पेंशन स्कीम को बंद करने का निर्णय अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार ने लिया था।
- कब बंद की: इस स्कीम को 1 जनवरी 2004 से प्रभावी रूप से बंद कर दिया गया।
- नया सिस्टम: OPS के स्थान पर न्यू पेंशन स्कीम (NPS) की शुरुआत की गई। NPS एक परिभाषित योगदान (Defined Contribution) योजना है, जिसमें कर्मचारियों और नियोक्ता दोनों का योगदान शामिल होता है, और पेंशन की राशि निवेश के रिटर्न पर निर्भर करती है।
- कारण: OPS को बंद करने का प्रमुख कारण इसके तहत आने वाले भारी वित्तीय बोझ को कम करना था, जो कि भविष्य में सरकार के लिए आर्थिक रूप से अस्थिर हो सकता था। NPS के माध्यम से सरकार ने पेंशन के वित्तीय बोझ को कम करने और अधिक टिकाऊ पेंशन प्रणाली बनाने का प्रयास किया।
यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS ) क्या है?
ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) की विशेषताएँ
- परिभाषित लाभ योजना: ओल्ड पेंशन स्कीम एक परिभाषित लाभ योजना थी, जिसका मतलब है कि कर्मचारी को सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाली पेंशन की राशि पहले से तय होती थी। यह अंतिम वेतन का 50% होती थी।
- महँगाई भत्ता (DA): OPS में सेवानिवृत्त कर्मचारियों को महँगाई भत्ता (Dearness Allowance) भी मिलता था, जो कि पेंशन में महँगाई के अनुसार वृद्धि करता था। यह वृद्धि केंद्र या राज्य सरकार द्वारा तय की जाती थी।
- संपूर्ण वित्त पोषण: इस योजना के तहत, सरकार द्वारा पेंशन का पूरा भुगतान किया जाता था। कर्मचारी के योगदान की आवश्यकता नहीं होती थी।
- विरासत सुविधा: OPS के अंतर्गत, यदि किसी कर्मचारी की मृत्यु हो जाती थी, तो उसके परिवार को पेंशन मिलती रहती थी। यह पेंशन कर्मचारी के जीवनसाथी या अन्य नामित व्यक्ति को प्राप्त होती थी।
- कर लाभ: पेंशनभोगियों को आयकर अधिनियम के तहत कुछ कर छूट मिलती थी।
OPS -ओल्ड पेंशन स्कीम की मुख्य बातें
मुख्य बिंदु | विवरण |
---|---|
योजना का नाम | ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) |
लागू होने की तिथि | 1 जनवरी 2004 से पहले भर्ती हुए सरकारी कर्मचारियों पर लागू |
योजना का प्रकार | परिभाषित लाभ योजना (Defined Benefit Scheme) |
पेंशन की गणना | अंतिम वेतन का 50% |
महँगाई भत्ता (DA) | पेंशन में महँगाई के अनुसार वृद्धि (सरकार द्वारा तय) |
वित्त पोषण | सरकार द्वारा पूरी तरह से वित्तपोषित |
विरासत सुविधा | कर्मचारी की मृत्यु पर परिवार को पेंशन प्राप्त होती है |
कर लाभ | आयकर अधिनियम के तहत कुछ कर छूट उपलब्ध |
OPS vs NPS | OPS में पेंशन निश्चित, जबकि NPS में पेंशन कर्मचारी के योगदान और निवेश के रिटर्न पर निर्भर |
वित्तीय बोझ | OPS सरकार के लिए अधिक वित्तीय बोझ; NPS में कर्मचारी भी योगदान करते हैं |
ओल्ड पेंशन स्कीम और न्यू पेंशन स्कीम (NPS) में अंतर
- वित्तीय बोझ: OPS सरकार के लिए अधिक वित्तीय बोझ साबित होती थी, क्योंकि इसमें सरकार को कर्मचारियों की पूरी पेंशन का भुगतान करना होता था, जबकि NPS में कर्मचारी भी योगदान करते हैं, और पेंशन राशि उनके योगदान और बाजार प्रदर्शन पर निर्भर करती है।
- परिभाषित लाभ बनाम परिभाषित योगदान: OPS में पेंशन की राशि पहले से निश्चित होती थी, जबकि NPS में पेंशन की राशि कर्मचारियों के योगदान और निवेश के रिटर्न पर निर्भर करती है।
- वारिस का अधिकार: OPS में पेंशन वारिस को मिलती थी, जबकि NPS में यह सुविधा सीमित है।
समापन
ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) सरकारी कर्मचारियों के लिए एक स्थिर और निश्चित पेंशन योजना थी, जो उनकी सेवानिवृत्ति के बाद के जीवन को आर्थिक रूप से सुरक्षित बनाती थी। हालांकि, इसके वित्तीय बोझ के कारण, 1 जनवरी 2004 के बाद भर्ती होने वाले सरकारी कर्मचारियों के लिए इसे न्यू पेंशन स्कीम (NPS) से बदल दिया गया। फिर भी, OPS की वापसी की माँग विभिन्न कर्मचारी संगठनों द्वारा की जाती रही है, और यह एक राजनीतिक एवं सामाजिक मुद्दा बना हुआ है।