Natural farming in hindi: आज के समय प्राकृतिक खेती (Prakritik Kheti) एवं जैविक खेती की बहुत आवश्यकता है। क्योकि लगातार भूमि पर रासायनिक कीटनाशकों तथा खाद का प्रयोग, भूमि को प्रतिवर्ष पलटने से भूमि की उर्वरा शक्ति पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है।
प्राकृतिक खेती क्या है
Natural farming: प्राकृतिक खेती वह खेती होती है। जिसमे मानव द्वारा निर्मित किसी भी प्रकार का रसायन या कीटनाशक उपयोग मैं नहीं लाया जाता। सिर्फ प्रकृति के दौरान निर्मित उर्वरक और अन्य पेड़ पौधों के पत्ते खाद, पशुपालन गोबर खाद उपयोग लाया जाता है यह एक प्रकार से विविध प्रकार की कृषि प्राणली है। जो फसलों और जीव जन्तु पेड़ो को एकीकृत करके रखती हैं।
प्राकृतिक खेती में कीटनाशकों के रूप में नीम के पत्ते गाय के गोबर की खाद, कम्पोस्ट, खाद जीवाणु खाद, फ़सल जानवरो के अवशेष और अन्य प्रकृति में उपलब्ध खनिज जैसे- रॉक फास्फेट, जिप्सम चुना मिट्टी आदि द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फ़सल को हानिकारक जीवाणुओं से बचाया जाता हैं।
लेख का नाम | प्राकृतिक खेती का महत्व |
लाभ | भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है |
वर्ष | 2022 |
आधिकारिक वेबसाइट | naturalfarming.niti.gov.in |
जैविक कीटनाशक
जैविक या जैव कीटनाशक वे कीटनाशक होते है जो रासायनिक कीटनाशकों की तुलना में फसलों पर उपयोग करने के लिए सुरक्षित हैं। जैविक कीटनाशक फसलों, जानवरों, पौधों और मनुष्यों के लिए सुरक्षित हैं। जैविक कीटनाशक पूर्णतः प्राकृतिक हाइड्रोजन पेरोक्साइड, नीबू, सल्फर, साबुन, नीम, गोमूत्र, लहसुन, मिट्टी का तेल, गोबर इत्यादि पदार्थों से बने होते हैं। जैविक कीटनाशक पौधों के विकास एवं गुणवत्ता बढ़ाने में प्राकृतिक रूप से मदद करते हैं क्योंकि उनके अंदर कोई रासायनिक घटक नहीं होता है।
रासायनिक कीटनाशक
रासायनिक कीटनाशक मानव द्वारा निर्मित वे कीटनाशक होते है जो रासायनिक विधि से लेबो में तैयार किये जाते है। इनका छिड़काव किट-पतंगों से फसलों की रक्षा के लिए किया जाता है। रासायनिक कीटनाशक विभिन्न केमिकलो को मिलाकर बनाया जाता है। इसलिए यह उपजाऊ मिट्टी को नुकसान पहुंचाने के साथ मानव, जीव-जंतु एवं पशुओ को भी नुकसान पहुँचता है।
प्राकृतिक खेती की आवश्यकता
पिछले कई वर्षों से खेतो मैं उपयोग होने वाले रसायनो कीटनाशकों से खेती में काफी नुकसान देखने को मिल रहा है। इसका मुख्य कारण हानिकारक कीटनाशकों का उपयोग बढ़ता जा रहा हैं। भूमि के प्राकृतिक स्वरूप में भी बहुत बदलाव हो रहे है जो हमारे लिए काफी नुकसानदायक होते है। रासायनिक खेती से प्रकृति में और मनुष्य के स्वास्थ्य में काफी गिरावट आई है। किसानों की पैदावार का आधा हिस्सा उनके उर्वरक और कीटनाशको में ही चला जाता है।
यदि किसान और अन्य व्यक्ति जो खेती में अधिक मुनाफा या फायदा कमाना चाहता है तो उसे प्राकृतिक खेती की तरफ अग्रसर होना चाहिए। खेती में खाने पीने की चीजे काफी उगाई जाती है जिसे हम उपयोग में लेते है। इन खाद्य पदार्थों में जिंक और आयरन जैसे कई सारे खनिज तत्व उपस्थित होते है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होती है। रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से ये खाद्य पदार्थ अपनी गुणवत्ता खो देते है। जिससे हमारे शरीर पर बुरा असर पड़ता है।
रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से भूमि की उर्वरक क्षमता खो जा रही है। यह भूमि के लिए बहुत ही हानिकारक है और इससे तैयार खाद्य पदार्थ मनुष्य और जानवरों की सेहत पर बुरा असर डाल रहे है। रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता काफी कम हो गई। जिससे मिट्टी के पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ गया है। इस घटती मिट्टी की उर्वरक क्षमता को देखते हुए जैविक खाद (Organic fertilizer) उपयोग बहुत जरूरी हो गया है।
प्राकृतिक खेती का महत्व
Natural farming in hindi: जैसा कि आप सभी जानते हैं, प्राकृतिक खेती का मुख्य आधार देसी गाय है। प्राकृतिक खेती (natural farming) कृषि की प्राचीन पद्धति है। यह भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है। इस प्रकार की खेती में जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को खेती में कीटनाशक के रूप में काम में लिया जाता है।
प्राकृतिक खेती में कीटनाशकों के रूप में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, फ़सल अवशेष और प्रकृति में उपलब्ध खनिज जैसे- रॉक फास्फेट, जिप्सम आदि द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फ़सल को हानिकारक जीवाणुओं से बचाया जाता है।
प्राकृतिक खेती की आवश्यकता (need for natural farming)
पिछले कई वर्षों से खेती में काफी नुकसान देखने को मिल रहा है। इसका मुख्य कारण हानिकारक कीटनाशकों का उपयोग है। इसमें लागत भी बढ़ रही है।
भूमि के प्राकृतिक स्वरूप में भी बदलाव हो रहे है जो काफी नुकसान भरे हो सकते हैं। रासायनिक खेती से प्रकृति में और मनुष्य के स्वास्थ्य में काफी गिरावट आई है।
किसानों की पैदावार का आधा हिस्सा उनके उर्वरक और कीटनाशक में ही चला जाता है। यदि किसान खेती में अधिक मुनाफा या फायदा कमाना चाहता है तो उसे प्राकृतिक खेती की तरफ अग्रेसर होना चाहिए।
खेती में खाने पीने की चीजे काफी उगाई जाती है जिसे हम उपयोग में लेते है। इन खाद्य पदार्थों में जिंक और आयरन जैसे कई सारे खनिज तत्व उपस्थित होते है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होती है। रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से ये खाद्य पदार्थ अपनी गुणवत्ता खो देते है। जिससे हमारे शरीर पर बुरा असर पड़ता है।
रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से जमीन की उर्वरक क्षमता खो रही है। यह भूमि के लिए बहुत ही हानिकारक है और इससे तैयार खाद्य पदार्थ मनुष्य और जानवरों की सेहत पर बुरा असर डाल रहे है। रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता काफी कम हो गई। जिससे मिट्टी के पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ गया है। इस घटती मिट्टी की उर्वरक क्षमता को देखते हुए जैविक खाद उपयोग जरूरी हो गया है।
प्राकृतिक खेती का महत्व (importance of natural farming in hindi)
भोजन के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट, 2017 में कहा गया है कि कृषि- पारिस्थितिकी (Agroecology) विश्व की संपूर्ण आबादी को भोजन उपलब्ध कराने और उसका उपयुक्त पोषण सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त पैदावार देने में सक्षम है। ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जहाँ गाँव प्राकृतिक खेती की ओर आगे बढ़ते हुए ग्रामीण जीवन में रूपांतरण ला रहे हैं तथा शहरों में भी प्राकृतिक खेती के सफल प्रयोग हो रहे हैं।
बिना सरकारी सहायता के इन उपलब्धियों को देखते हुए कल्पना की जा सकती है कि यदि इसमें राज्य का सहयोग प्राप्त हो तो बड़ी संख्या में किसानों को लाभ मिल सकता है। हालांकि भारत सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये लोगों को प्रोत्साहित कर रही है किंतु यह प्रोत्साहन प्रचार और जागरूकता के साथ-साथ सब्सिडी और आर्थिक स्तर पर भी होना चाहिये। भारत बड़ी मात्रा में उर्वरकों पर सब्सिडी देता है। यह सब्सिडी वर्ष 1976-77 की 60 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्तमान में 75 हज़ार करोड़ रुपए हो गई है। भारत के सबसे बड़े आर्थिक बोझों में से एक सिंथेटिक उर्वरकों के लिये प्रदत्त केंद्रीय सब्सिडी रही है। इसकी तुलना में जैविक क्षेत्र को मात्र 500 करोड़ रुपए की सब्सिडी प्राप्त है।
इसके अतिरिक्त, परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिये जैविक मूल्य श्रृंखला विकास अभियान के दायरे में अत्यंत सीमित क्षेत्र ही है। प्राकृतिक खेती के अंतर्गत मात्र 23.02 मिलियन हेक्टेयर भूमि है जो भारत में कुल कृषि योग्य भूमि (181.95 मिलियन हेक्टेयर) की मात्र 1.27 प्रतिशत है।
प्राकृतिक खेती के चार सिद्धांत (Four principles of natural farming)
- पहला सिद्धांत है, खेतों में किसी भी प्रकार से कोई जोताई नहीं करना। यानी न तो उनमें जुताई करना, और न ही मिट्टी को बार बार पलटना। धरती अपनी जुताई स्वयं प्राकृतिक एवम स्वाभाविक रूप से पौधों की जड़ों के प्रवेश होने वाले केंचुओं व छोटे प्राणियों, जीव तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के जरिए कर लेती है।
- दूसरा सिद्धांत है कि किसी भी तरह की तैयार खाद मैं रासायनिक उर्वरकों या कीटनाशकों का उपयोग न किया जाए। इस पद्धति में हरी खाद और हरी पत्तीयो या सुखी पत्तियों को गोबर की खाद को ही उपयोग में लाया जाता है।
- तीसरा सिद्धांत है, निंदाई-गुड़ाई न की जाए। न तो हलों से न कीटनाशको के प्रयोग द्वारा। खरपतवार मिट्टी को उर्वर बनाने तथा जैव-बिरादरी में संतुलन स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। बुनियादी सिद्धांत यही है कि खरपतवार को पूरी तरह समाप्त करने की बजाए नियंत्रित किया जाना चाहिए।
- चौथा सिद्धांत रसायनों पर बिल्कुल निर्भर न करना है। जोतने तथा उर्वरकों के उपयोग जैसी गलत प्रथाओं के कारण जब से कमजोर पौधे उगना शुरू हुए, तब से ही खेतों में बीमारियां लगने तथा कीट-असंतुलन की समस्याएं खड़ी होनी शुरू हुई। छेड़छाड़ न करने से प्रकृति-संतुलन बिल्कुल सही रहता है।
प्राकृतिक खेती के फायदे (benefits of natural farming in hindi)
किसानों की दृष्टि से लाभ
- भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है।
- सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है।
- रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है।
- फसलों की उत्पादकता में वृद्धि।
- बाज़ार में जैविक उत्पादों (Organic Food) की मांग बढ़ने से किसानों की आय में भी वृद्धि होती है।
- मिट्टी की दृष्टि से जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है।
- भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती है।
- भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होगा। और जलधारण की क्षमता बढ़ती है।
- पर्यावरण की दृष्टि से भूमि के जलस्तर में वृद्धि होती है।
- मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है।
- कचरे का उपयोग, खाद बनाने में, होने से बीमारियों में कमी आती है।
- फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि
- अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद की गुणवत्ता का खरा उतरना।