Pashupalan Business: पशुपालन व्यवसाय कैसे करे, इसके लाभ, हानि, आवश्यकता

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पशुपालन की जानकारी हिंदी में | भैंस पालन  | मुर्गी पालन | गाय पालन | बकरी पालन | Pashupalan vyavsay | पशुपालन व्यवसाय कैसे करे | Pashupalan Business | पशु पालन कैसे करें | पशुपालन के प्रकार

हमारा देश कृषि प्रधान देश होने के साथ गांवो का देश है। हम सभी जानते है की जो भी किसान खेती करता है वह खेती के साथ मुर्गी पालन, गाय -भैस पालन, बकरी पालन जरूर करता है। खेती से किसान को पशु चारा आसानी से मिल जाता है, इससे किसान को पशुपालन करने पर अतिरिक्त आय प्राप्त होती है। गांव के लगभग सभी परिवार कोई न कोई पशुपालन व्यवसाय जरूर करता है। जिससे उनको नियमित या मासिक आमदनी मिलती रहे। आज हम पशुपालन व्यवसाय, इसके लाभ, हानि और पशुपालन से होने वाले आर्थिक लाभ आवश्यकता के बारे में विस्तृत जानकारी इस लेख में देंगे।

पशुपालन क्या है

पशुपालन क्या है?

पशुपालन कृषि विज्ञान (Agricultural science) की वह शाखा हैं जो पालतू पशुओं को मित्वयतापूर्ण (economically) एवं स्वास्थ रखने की कला का बोध या ज्ञान कराती है। पशुपालन विज्ञान के अंतर्गत हम मुख्यता पशू प्रजनन, पशुओं की भोजन व्यवस्था, पशुओं की देख-रेख तथर चिकित्सा का गहन एवम विस्तृत अध्यन करते है।

Animal husbandry का अर्थ है पशुओं का प्रजनन करवाना, उनसे उत्पादन प्राप्त करना तथा उनकी देखभाल करना इसी के अन्तर्गत यह शाखा प्रजनन( breeding), खान_पान( feeding), प्रबन्धन (management), प्रभावशाली रोग नियंत्रण ( disease control) तथा पशुओं से प्राप्त उत्पादों व उप उत्पादों ( product & by- product) आदि से सीधा संबंध रखती है। एक बेहतर व सुदृढ़ पशुपालक अच्छे सामाजिक व आर्थिक लाभ की और तेजी से बढ़ता है।

पशुपालन व्यवसाय (Pashupalan business)

भारत में 6 प्रकार के पशुपालन के व्यवसाय बहुत लाभदायक होते है। पशुपालन व्यवसाय कैसे शुरू करे? हमारा भारत देश अपनी संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं के बहुत जाना जाता है। यहां पर पशुओ के लिए बहुत मान्यताओं के साथ दयापूर्वक भाव प्रकट किए जाते है। भारत देश मै पशुपालक अपने पशूओ से होने वाले सभी प्रकार के लाभों को अच्छी तरह से समझते साथ ही भारत देश की सरकार ने पशुपालको के भिन्न भिन्न योजना के साथ बहुत से कार्यों का क्रियावन किया जाता पशुपालन बहुत पहले समय से चलता आ रहा है। पर आजकल के समय मै। बहुत सी वैज्ञानिक पद्धति विकसित हो गई है। जीससे लोग बहुत जागरूक हो गए है। अपने पशुओं की अच्छे से देख ररे करने लग गए है।

पशुपालन के प्रकार

भारत में आय के साधन के लिए बहुत से साधन संसाधन उपलब्ध है । परंतु भारत एक कृषि प्रधान देश होने की वजह से यह की जनता कृषि और पशुपालन पर निर्भर करती। और यह विभ्नन प्रकार के पशुपालन उपलब्ध है।

मुर्गी पालन व्यवसाय (Murgi Palan business)

मुर्गी पालन व्यवसाय

कुक्कुट पालन या मुर्गी पालन का संबंध पक्षियों के व्यावसायिक पालन और प्रजनन से है। बत्तख, मुर्गियां, गीज़, कबूतर, टर्की और अन्य पालतू पक्षियों को अंडे और मांस के लिए पाला जाता है। पशुओं से स्वस्थ भोजन प्राप्त करने के लिए उनकी देखभाल करना और उन्हें रोग मुक्त वातावरण में रखना महत्वपूर्ण है। अंडे और मांस में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होता है। स्वच्छता और स्वास्थ्यकर परिस्थितियों को बनाए रखना आवश्यक है। मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए पक्षियों के मल का उपयोग खाद के रूप में किया जाता है। कुक्कुट पालन बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देता है और किसानों की आर्थिक भलाई में योगदान देता है। आज के समय कड़कनाथ मुर्गी पालन का व्यवसाय खूब चल रहा है। इसमें मांस से लेकर खून तक काला रहता है। इसकी डिमांड देश से लेकर विदेश में खूब बढ़ रही है।

गाय पालन का व्यवसाय (Cow farming business)

भारत में गाय लगभग 30 से 35 लीटर दूध देती है और एक लीटर दूध की कीमत है 40 रुपए, इसके हिसाब से दिन का लगभग 1200 रु यानि 5 गाय के दूध के आप 6 हजार प्रतिदिन कमा सकते हैं। चारा पानी खर्च आदि निकालने पर दिन के 2 हजार रुपये कम से कम 5 गायों पर आप कमा सकते है। गिर गाय का पालन कर आप लाभ कमा सकते है।

गाय पालन का व्यवसाय

इसके अलावा दूध से बनने वाले डेयरी उत्पाद जैसे दूध, दही, छाछ, घी और मावा के जरिए भी लाभ कमाया जा सकता है। इसके अलावा गोबर गैस से बायोगैस, कंडे और खाद बनाकर भी अच्छा-खासा मुनाफा कमाया जा सकता है।

भैंस पालन

भैंस पालन

हमारे भारत में मुख्यतः तीन प्रकार की भैंसें मिलती हैं, जिनमें मुरहा, मेहसना और सुरति प्रमुख भैंस की नस्ले है। मुरहा नस्ल भैंसों की प्रमुख ब्रीड मानी जाती है। इस भैंस को ज्यादातर पंजाब और हरियाणा में पाला जाता है। मेहसना एक मिक्सब्रीड है। जो गुजरात एवं महाराष्ट्र राज्य में पाई जाती है। मेहसाना नस्ल की भैंस एक महीने में 1200 से 3500 लीटर दूध देती हैं। सुरति इनमें सबसे छोटी की भैंस नस्ल (Breed) है। इस नस्ल की भेंसे भी गुजरात में पाई जाती है। यह एक महीने में लगभग 1600 से 1800 लीटर दूध देती है। आप इन भैंसो का बिजनेस कर अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते है।

बकरी पालन

बकरी पालन

भारत मैं पहले हर घर मै बकरी को पाला जाता था पर आजकल के समय मै ये सिर्फ गांव तक ही सीमित रह गया है। यदि आप बकरी पालन का व्यवसाय को करते है तो आपको बहुत से लाभ मिलेंगे बकरी 6माह मै 2 बकरे देती है यदि आप उन दोनो को बाजार मै 6000 या 8000 में बेचे तो आपको आर्थिक लाभ होगा। साथ जल्दी ही अन्य लाभ प्राप्त होगे। बकरी पालन बिजनेस कैसे करे?

मछली पालन

मछली पालन

मछली पालन विनियमित टैंकों या तालाबों में व्यावसायिक रूप से मछली उगाने की प्रथा है। मछली और मछली प्रोटीन तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। मछली फार्म अन्य चीजों के अलावा सैल्मन, कैटफ़िश, कॉड और तिलपिया उठाते हैं।

मधुमक्खी पालन

मधुमक्खी पालन

मधुमक्खी पालन से तात्पर्य मधु मक्खियों को पालने की प्रथा से है। नतीजतन, शहद और मोम का उत्पादन करने के लिए मधुमक्खियों की देखभाल और प्रबंधन की आवश्यकता होती है। शहद में अविश्वसनीय औषधीय गुण होते हैं और यह अल्सर, रक्त शर्करा प्रबंधन, पाचन विकार, खांसी और गले में खराश के उपचार में सहायता कर सकता है। मधुमक्खी पालन मधुमक्खियों को काम करने और रहने के लिए एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करता है। मधुमक्खियां हमारे लिए भी आवश्यक हैं क्योंकि वे हमारे खाद्य स्रोतों को परागित करती हैं।

पशुपालन से होने वाले आर्थिक लाभ

पशुपालन से लाभ आपको निम्न तरीके से मिलेगा :-

मांस ( Meat)

पशुओं से हमे एक अन्य महत्वपूर्ण उत्पाद “ मांस” प्राप्त होता हैं जो भी आदर्श खाद्य प्रदार्थ की श्रनी मै रखा जाता हैं क्योंकि इसमें उपस्थित प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन व खनिज लवण उच्च किस्म के होते है। इसकी पोषण क्षमता ( nutrive value) भी उच्च स्तर की होती हैं। मांस मुख्यत भैंस, बकरी, भेड़, सुअर व कुक्कट आदि से प्राप्त होता है। सुअर मांस की दृष्टि से बहुत उपयोगी होते हैं। क्योंकि ये बहुत जल्दी वृद्धि करते है।

डेयरी फार्मिंग

डेयरी फार्मिंग एक कृषि पद्धति है जो दूध के दीर्घकालिक उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करती है, जिसे बाद में दही, पनीर, दही, मक्खन, क्रीम और अन्य डेयरी उत्पादों जैसे डेयरी उत्पादों को बनाने के लिए संसाधित किया जाता है। इसमें गाय, भैंस, भेड़ और बकरियों जैसे डेयरी जानवरों की देखभाल करना शामिल है। पशु रोग मुक्त हैं और पशु चिकित्सा पेशेवरों द्वारा नियमित रूप से निरीक्षण किया जाता है। एक स्वस्थ प्राणी जिसका शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य अच्छा हो। इन जानवरों को हाथ से या यंत्रवत् दूध दिया जाता है। दूध को संरक्षित और औद्योगिक रूप से डेयरी उत्पादों में संसाधित किया जाता है जिसे बाद में व्यावसायिक रूप से बेचा जाता है।

पशुपालन दुग्ध व्यवसाय

पशुओं से हमे एक महत्वपूर्ण उत्पाद के रूप मै दूध प्राप्त होता है। वावसायिक स्तर पर दूध गाय भैंस से प्राप्त होता हैं जबकि बकरी व उठनी से भी दूध प्राप्त होता हैं। दूध को एक आदर्श भोजन माना जाता है क्योंकि इसकी पोषण क्षमता इसमें पाए जाने वाली उच्च गुणवत्ता की प्रोटीन, लैक्टोज (शर्करा), वसा, विटामिन व खनिज लवणों के कारण उच्चतम मानी जाती हैं। इसके साथ ही यह एक आसानी से पचने वाला व रुचिकर खाद्य प्रदार्थ है जो उन्हें सभी पोषक तत्व उचित मात्रा मै प्रदान करता है। शाकाहारी मनुष्यो के भोजन मै केवल मात्र दूध ही जैविक प्रोटीन (animal protein) का स्रोत होता है दूध मै iron (Fe) व vitamin C अनुपस्तिथ या बहुत हि नगण्य मात्रा मै होते है।

अच्छे स्वास्थ के लिए उपयोगी 

बकरी के दूध की यह विषशेता होती है की यह रचना की दृष्टि से मानवीय ( human female) दूध से मिलता जुलता होता है तथा इसमें वसा के कण छोटे छोटे होने के कारण यह सुपाच्य होता है। यह बच्चो व रोगियों के लिऐ अतिउपयोगि होता है। गाय के दूध का असर अम्लीय होता है जबकि बकरी के दूध का प्रभाव सार्यी होता हैं। दूध से अन्य महत्वपूर्ण उप-उत्पाद ( by products) प्राप्त किए जाते है जो बेहतर लाभ प्रदान करने के साथ साथ दूध की उपयोगिता व मांग को भी बड़ते है। इन उप उत्पाद मैं दही, छाछ, घी, पनीर, आइसक्रीम, चेन्ना आदि शामिल हैं भारतीय कृषि व्यवसाय मै 17% से अधिक आय दूध से प्राप्त होती है।

ऊन (wool)

ऊन भेड़ों से प्राप्त होती है तथा भेड़ों की विभिन्न नस्ले अलग अलग प्रकार की ऊन प्रदान करती है, जैसे_ ऊनी कपड़े बनाने के लिए बारीक व मुलायम ऊन ( fine quality wool), कंबल व गलीचे बनाने के लिए मोटी ऊन ( carpet quality wool) उद्योग धन्धो मैं ऊन की मांग उसकी गुणवत्ता के आधार पर होती हैं। अंत ऊन की गुणवत्ता दर्शाने के लिऐ प्रत्येक किस्म की ऊन को कुछ निर्धारित अंक दिए जाते है जिन्हे quality number कहते है। भेड़ों से प्राप्त ऊन से स्वेटर, कम्बल, कोट,गलीचे,टोपी आदि बनाए जाते है। राजस्थान की सभी देशी भेड़ों से प्राप्त ऊन carpet quality की होती हैं। एक वर्ग मीटर गलीचा बनाने के लिए लगभग 800 gm से 3 kg तक ऊन काम मैं आ सकती है।

बाल (hair)

बाल मुख्यता ऊट, बकरी व सुअर आदि से प्राप्त होते है । ऊट से प्राप्त बालो से कम्बल , दरी आदि बनते है है। Angora नस्ल मुलायम बाल प्राप्त होते हैं जिनसे शाल , स्वेटर आदि उन्नी वस्त्र बनाए जाते है। बालों से मोटे कम्बल, रस्सियां व अनाज भरने की बोरिया बनाई जाती है। ऊट व सुअर से प्राप्त बालो से विभिन्न प्रकार की ब्रश बनाई जाती हैं जो polish, grooming आदि के काम आती हैं।

त्वचा व चमड़ा (skin & Leather)

पशु की मृत्यु के पश्चात उसकी खाल उतारकर चमड़ा बनाने के काम मै ली जाती हैं। यह सभी प्रकार के पशुओं जैसे: गाय, भैंस, भेड़ बकरी, घोड़ा, ऊट व सुअर से प्राप्त होती हैं तथा इसका उपयोग चमड़ा उद्योग मै जूते, चप्पल, बैग, बेल्ट, जैकेट व खेल सामग्री आदि बनाने मै किया जाता हैं।

अंडा (egg )

Poultry से हमे अंडे प्राप्त होते हैं जिनका वावसायीक स्तर पर poultry farm में उत्पादन किया जाता है अंडो मै भी उच्च गुणवता की protein, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन व खनिज लवण पाए जाने के कारण इन्हें भी आदर्श खाद्य प्रदार्थ की श्रेणी मै रखा जाता हैं।

खाद (Manure)

खाद फसलों को पोषण प्रदान करने एवम उनकी वर्द्धी के लिए अति आवश्यक हैं। पशुओं से प्राप्त कार्बनिक खाद ( organic manure) मै सभी प्रकार के पोषक तत्वों की उचित मात्रा उपलब्ध होती हैं जो पेड़_ पौधो की वृद्धि के काम आती है। खाद हमे मुख्यत गए, भैंस, भेड़ व बकरी से प्राप्त होती हैं। हालांकि गोबर की खाद की तुलना मै भेड़ की मेंगनी ( faecalballs) मै नाइट्रोजन व पोटाश की मात्रा लगभग दुगुनी होती है परन्तु अधिक उपलब्धता के कारण गोबर की खाद ज्यादा काम मै ली जाती है। गोबर की खाद द्वारा तैयार कृष्ण उत्पाद व सब्जियां आदि मेहगे दामों पर बिकते हैं अगर गोबर कि खाद का सही उपयोग किया जाए तो हमे रसायनिक खाद की जरूरत ही नहीं पड़ेगी जो प्रतिवर्ष लगभग 4500करोड़ रूपये खर्च करके विदेश से आयात करनी पड़ती है।

जमींन के पोषक तत्वों के लिए जरुरी 

इसके अलावा रसायनिक खाद जमीन को खराब करती हैं तथा इसकी आवश्कता प्रतिवर्ष बढ़ती जाती हैं। गोबर से थेपड़ी बनाई जाती हैं जो ईंधन के रूप मे चूल्हो मै काम लि जाती हे। गोबर को घर lipne के काम में भी लिया जाता हैं। गोबर का सबसे अच्छा उपयोग गोबर गैस बनाने में हो सकता है। गोबर गैस संयत्र से गोबर गैस व उत्तम गुणों वाली खाद प्राप्त होती है। गोबर गैस ईंधन के रूप मै काम मै ली जाती हैं। गोबर के अलावा गाय से उत्सर्जी प्रधाथ के रूप मै गोमूत्र भी प्राप्त होता हैं जिसका उपयोग विभिन्न दवाई बनाने व रोगों से बचाव में किया जाता हैं।

सिंग, खुर व हड़िया ( horn,hoofs & bones)

पशुओं से प्राप्त सिंग ( गाय, भैंस, भेड़ व बकरी) व खुरो का उपयोग सजावटी सामान, बटन व kange आदि बनाने में किया जाता हैं। सभी मृत पशुओं से हडिया का उपयोग हड्डी उद्योग में सजावटी सामान व bone meal बनाने मै किया जाता है।

भारवाहक के रूप में 

विभिन्न पशुओं जैसे बैल, भैसा, घोड़ा, खच्चर, गधा, ऊट आदि को विभिन्न प्रकार की गाड़ियां खींचने, हल चलाने, सामान खींचने तथा व्यक्तियों को एक स्थान से दुसरे स्थान तक ले जाने के काम मै लिया जाता है। बहुत से मजदूर वर्ग के लोगो की आजीविका का यही साधन होता हे इस प्रकार स्पष्ट है की पशुओं से हमे अनेक लाभ प्राप्त होते हैं तथा इन आर्थिक उपयोगों का बहुत से लोगो ने समुचित उपयोग करते हुए इन्हें अपने वायसाय के रूप मै ग्रहण कर लिया है। अंत ये सब मनुष्य के सामाजिक व आर्थिक स्तर ( socio economic status) ko ऊंचा उठाने मै बहुत सहायक सिद्ध होते है।

जैसे:-  dairy farming, poultry farming, meat plant, leather industry, wool industry आदि।

पशुपालन की आवशयकता क्यों है?

आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए पशुपालन की ग्रामीण क्षेत्रों मै बहुत आवश्यकता है। ग्रामीण लोगो कि आजीविका का साधन ही पशुपालन होता है। खेती की बाद पशुपालन ही उनकी रोजगार का जरिया है । वे लोग बहुत से जानवरो को बेच कर पैसा कमाते है। साथ ही उनकी आवश्यकता पूर्ति दूध, मटन, चमड़ा ,गोबर, खाल, आदि की पूर्ति वो पशुपालन के जरिए करते है।

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1 thought on “Pashupalan Business: पशुपालन व्यवसाय कैसे करे, इसके लाभ, हानि, आवश्यकता”

  1. hii Sir पशुपालन से सम्बंधित अच्छी जानकारी लगी

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